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समझदार (लघुकथा)

   समझदार “ मंजरी बहुत समझदार है , वो इस बार भी इनकार ना करेगी I” सासू माँ ने उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा I लेकिन आज यह समझदार शब्द हथौड़े की तरह उसके मन मस्तिष्क पर चोट कर गया और उसकी ऊँगली पकड़कर अतीत की गलियों में ले गया I बचपन से लेकर जवानी तक कि न जाने कितनी ही घटनाएं मुँह बाये सामने खड़ी मिलीं I “ अरे दूध कम है , आज लड़कों को ही दे दो I मंजरी तो समझदार है समझ जाएगी I” माँ ने दोनों भाइयों के गिलास भर दिए थे I “ तुझे पढ़ लिख कर क्या करना है ? तू तो समझदार है घर के काम काज पर ध्यान दे I” उसकी दादी ने उस पर तुषारापात किया था I “ तू तो समझदार है बेटी तेरे भाई तो कॉलेज   में पढ़ते हैं , उनके लिए नए कपड़े लेना ज़रूरी है , I” बापू ने उसको समझाते हुए कहा था I “ देख बेटी वर की उम्र ज्यादा है तो क्या हुआ ? लेकिन बिना दहेज़ के शादी कर रहा है I तू तो समझदार है , हमारी हालत तुमसे छुपी है क्या ?” माँ की कड़वी लेकिन सच्ची बात ने उसकी